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(३४७) साच नही लवलेशे ॥ केश॥१॥ जूता बोला कोण धारशे, गिरुग्राना गुण गाशे ॥ केश॥ २॥ साहेब तमे हमारे हमें तमारे, प्रीत सदा निर्वहेशे ॥ के० ॥ ॥३॥ आसंघातें देह हशे तो, फरि फरिने केशे ॥ के ॥ ४ ॥ साहेब डेल बोगाला देवदयाला, धुलेवा धणीने ध्याशे ॥ के॥॥षनदासनी अाशा फलशे, नवनवनां सुःख टलशे । केश ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ वैराग्योपदेशक सद्याद ॥ ॥हक मरना हक जानां यारो, मत को करो गुमा ना॥हा॥ ए अांकगी। उढा माटी पेरण माटी,मा टीका सराना॥ वसतीमेंसें बार निकाला, जंगल किया ठिकाना॥हा॥१॥ हाथ! चडते घोडे चडते, र आगें नीसाना ॥ नीली पीली बरख चलती,उत्तर कि या पयाना ॥ ह ॥ २ ॥ नरपति हो के तखत पर बेठे, नरिया नारि खजाना ॥ सांऊ सकारे मुजरा लेते, ऊपर हाथ वेकाना ॥ ह० ॥३॥ पोथी पढ पढ हिंदू जूले, मुसलमान कूराना ॥ रूपचंद कहे अ रे नाई संतो, हर्दम प्रनु गुण गानां ॥ ह ॥४॥
॥ अथ श्री अनंतजिन स्तवनं ॥ ॥हारे लाल राम पूरा बाजारमा॥ ए देशी॥
॥ हारे लाल चतुर शिरोमणि चौदमा, जिनपति नाम अनंत मेरे लाल ॥ गुण अनंत प्रगट कस्या, कस्यो विनावनो अंत ॥ मेरे लाल ॥ चतुर शिरोमणी चित्त धरो ॥ ए आंकणी ॥ ॥ हारे लाल चार