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(३४ए) अनंता जेहना, आतम गुण अनिराम ॥ मे० ॥ झान दर्शन सुख वीर्यता, कर्मे संथ्यां गम ॥ मे॥ ॥ च ॥ २॥ हारे लाल चतुर धरो निज चित्तमां, ए जिनवरनुं ध्यान ॥ मे ॥ अर्थो अर्थ निवासने, सेवे धरी बदु मान ॥ मे० ॥ च ॥३॥ हारे लाल झानावरणी क्ष्य करी, लघु अनंतुं ज्ञान ॥ मे ॥ दर्शनावरण निवारतां, दर्शन अनंत विधान ॥ मे॥ ॥ च ॥ ४ ॥ हारे लाल वेदनीय विगमे थयुं, सुख अनंत विस्तार ॥ मे ॥ अंतराय उलंघतां, वीर्य अनंत नदार ।। मे० ॥ च ॥ ५॥ हारे लाल एम अनंत निज नामनी, स्थिरता थापी देव ॥ मे० ॥ जिम तरंस्यां सरोवर नजे, तिम स्वरूप जिन सेव ॥ ॥ मे॥ च ॥ ६ ॥ इति अनंतजिन स्तवनं ॥
॥ अथ शांति जिन स्तवनं ॥ ॥सेवरे नवि शांतिजिणंद सनेहा, शांतरस गेहा, समामृत गेहा ॥सेवो नवि शांति जिणंद सनेहा ॥ए आंकणी ॥ राग शेष नव पाप संतापित, त्रिविध ताप हर मेहा ॥ माया लोन राग करी जानो, शेष क्रोध मद रेहा ॥ से० ॥ १ अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानी, पञ्चरकाण संजल हा ॥ निज अन्योन्य सदृशथी चसह, संख्या वासित देहा ॥ से० ॥ ३ ॥ नोक पाय नव हास्य अरति रति, शोक जुगुप्सा नय वे हा ॥ मन वच काय तपावत ताथे, कहियें ताप अहा ॥ से० ॥ ३ ॥ जैसें वनदव तरुगए बाले,