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________________ (३३४) क० ॥ ॥ लाख वरस लगें ते वली, एम दीये इव्य अपार ॥ ला ॥ एक सामायिकने तोलें, नावे तेह जगार ॥ ला॥क० ॥३॥ सामायिक चनविसबो, नखं वंदन दोय दोय वार ॥ लाल रे ॥व्रत संनारो रे आपणां, ते नवकर्म निवार ॥ लाल रे ॥ कर॥ ॥ ४ ॥ कर कानस्सग्ग शुज ध्यानथी, पञ्चरकाण सू धुं विचार ॥ लाल रे ॥ दोय सजायें ते वत्ती, टालो टालो अतिचार ॥ लाल रे॥कर॥ ५॥ श्रीसामायिक प्रसादथी, लहीयें अमर विमान ॥लाल रे ॥धर्मसिंह मुनि एम नणे, ए डे मुक्ति निदान ।। लाल रे॥क०॥६॥ ॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं ।। . ॥ कृपा करो ने गोडी पास जिनेसर, तुम साहिब अंतरजामी ॥ ॥ ऊंचे ऊंचे गिरिपर प्रनुजी विराजे, आस पास ग्यानी ध्यानी ॥ ॥१ ॥ नील वरण प्रनु अंगीयां बिराजे, सूरतकी जाउं बलि हारी॥ कृ०॥ बांहे बाजुबंध बेहिरवा बिराजे, कुंम लकी बबि है न्यारी ॥ ७ ॥ २ ॥ ढूंढत ढूंढत प्रनु जीकु पायो, पूरण पदवी अब आई॥०॥ नाथ नि रंजन नाम तुमारो, रूपचंद पदवी पाई ॥७॥३॥ ॥अथ समेतशिखरगिरिस्तवनम् ॥ ॥ तुंही नमो नमो समेतशिखर गिरि, आदीश्वर अष्टापद सिदा, वासुपूज्य चंपापुरी॥ तुंगा नेम गया गिरनारें मुक्ते, वीर पावन पावापुरी ॥ तुं० ॥१॥ वीशे टूंके वीश जिनेसर, सिक्षा अणसण आदरी॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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