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(३३३) जी॥नेटवा ऋषन जिणंद,मारा वहाला श्रीजिनवर जी॥१॥ पालीता| नगर सोहामj॥अ॥ रूडी ललिता सरनी पाल ॥मा०॥ जिहां रे थांबा वडला घ गा॥अ॥ फूकी रश् चंपा केरी माल ॥ मा० ॥२॥ धन ते पंखी रे पारेवडां ॥अशेर्बुजे वसी रह्या मोर ॥ मा० ॥ उमाहो करीने जे घरें रह्या ॥ अ॥ ते मा एस नही ढोर ॥मा॥३॥.शेठेजा मारग चालतां, ॥अ॥ नमे ने जीणी जीणी खेह ॥मा०॥ मेला था शे रे महारां कापडां॥अ॥ निर्मल थाशे मारी देह ॥ ॥मा० ॥ ४ ॥ कंचुं देहेरुं रेयादिनाथर्नु॥०॥ आ गल चोक विशाल ॥ मा० ॥ जिहां मेले मेले घणा मानवी ॥ अ० ॥ गावे प्रनुगुणमाल ॥ मा० ॥ ॥ ५ ॥ केशर घसी जया वाटका ॥ अ० ॥ पूजवा आदि जिणंद ॥ मा॥ फूलडानो हार कंवें सोहियें ॥ अ॥ दीवडानी ज्योति अवंम ॥ मा० ॥ ६ ॥ गिरिवर दीते माहरे ॥०॥ दिलमां नपजे आणंद ॥ मा० ॥ नेटवानो रे मुकने कोम घणो ॥५०॥प्रेम घणो जिनचंद ॥ मा० ॥ ७ ॥इति संपूर्ण ॥
॥अथ सामायिकलान सजाय॥ ॥ कर पडिक्कमणुं जावरां, दोय घडी शुनध्या न ॥ ताल रे ॥ परनव जातां जीवने, संबल साचुं जाण ॥ लाल रे ॥ कर ॥ १ ॥ श्रीमुख वीर श्म कचरे, श्रेणिक रायप्रतें जाण ॥ला॥लाख खामी सोना तणी, दीये दिन प्रत्ये दान ॥ लाल रे ॥