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(३०४) यें ॥ सकल पातिक हर विमल केवल धर, जाको वासो शिवपुर तासुं लय लायें ॥ नाद बिंद रूप रंग पाणि पाद नुत्तमंग आदि अंत मध्यनंग जाकू नाहिं पायें ॥ संघेण संताण जाण, नहिं कोई अनु मान, ताहोंको करत व्यान शिवपुर जायें ॥ जणे मुनि बालचंद सुनो हो भविक सुंद,अजर अमर पद परमेसरकों ध्यायें ॥ १ ॥ एक अरिहंत दे देव करि जानियें ॥ जाकों कोध नाहिं मूर पान माया लोन दूर, कर्म किये चकचूर जिने मोह नागारों ।। जाकों नमे इंद चंद मुरनर मुनि सुंद,अनंत गुणहिं जि वंद त्रिभुवन मानियें ॥ जाकों हे अनंत झाद देत हे मुगति दान, अहोनिश ताको ध्यान मनमांहि था नियें ॥ जणे मुनि ॥ एक ॥ २ ॥ तरन तारन गुरु तारे जव पार ए ॥ पांचे इंशी संवरत नव विधि ब्रह्मव्रत, धरत तजत नित कोधादिक चा र ए ॥ महाव्रत पंच बार पाले हे पंच याचा र,सुमति गूपति सार, माता जयकार ए एसे गुने गुरु होय खट काय पाले जोय, गौतम नप म सोय मुगति दातार ए ॥ जरो० ॥ तरनर ॥ ३ ॥ जग एक जीव दया धर्म सुख दाइए ।। धर्महिंतें इदि वृद्धि धर्महितें नवनिदि, धर्मतें सकल सिदि बदु जीव पाएं ॥ धर्महिंतें देव लोक धर्महिंतें सब थोक, यह लोक परलोक धर मही सखाएं ॥ ताकू नमे सुरवर नरवर बहू पर,