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तुम सारिखा ॥म॥ मेंतो कोई न दीठ ॥जगाम॥ हडामां चाहे नहिं ॥ म ॥ मोढे बोले ते मीठ ॥ ज० ॥ म०॥४॥ आशा तो तुम नपरें ॥म० ॥ मेरु समान में कीध ॥ ज० ॥ म ॥ जो क्षण एक कृपा करो। म ॥ तो सदु होवे रे सिम ॥ ज० ॥ ॥ म० ॥ ५ ॥ जे अक्ष्य सुख शाश्वतां ॥ म ॥ जे सहु चाहे रे लोक ॥ ज० ॥ म ॥ नहिं आपो माग्युं थकुं॥ म ॥ जाणपणुं सदु फोक ॥ ज०॥ ॥ म ॥ ६ ॥ घणुं युं कहियें जागने ॥ म० ॥ देजो स्वामीरे सेव ॥ ज० ॥ म ॥ कवि ते रूप प सायथी॥ म॥दि कहे नित्यमेव ॥जम॥७॥
॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांति जिणंद जजो सदा, नवियण बहु नावें ॥ जगत शिरोमणि जेहना, गुण ज्ञानी गावे ॥ शां० ॥ ॥॥१॥ दूषण काई न देखियें, मूरती अतिसारी॥ मोहनगारी मुज मनें, प्रनु लागे प्यारी ॥ शां० ॥ ॥ ॥ गर्नथकां पण गजपुरे, करुणा जिरो कीधी॥ जनम समय त्रण जगतमें,दील शाता दीधी॥ शां० ॥ ॥३॥ नाम जपे मुख निरखीने, होए खुशियाली॥ मंगलमाला मंदिरें, दिन दिन दीवाली ॥ शां॥ ४ ॥ समकितधारी समझीने, साचे दिल सेवे ॥ कहे ला वण्य कृपा करी, बदु दोलत घर देवे ॥ शां० ॥ ५ ॥
॥ अथ बालचंद बत्रीश। प्रारंजः ॥ ॥ कवित ॥ अजर अमर पद परमेसरकों ध्या