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वरसें, के महावदि पंचमीने दिवसें, के नेट्या श्रीया दीसर उलटें ॥चालो० ॥ ७ ॥ के एह उत्तम पदनी सेवा, के देजो मुने देवाधिदेवा, के शिवरूपी लखमीने सुख मेवा ॥ चालो ॥ ॥ इति ॥
॥ पद राग कल्याण ॥ ॥ मोहे कैसे तारोगे दीन दयाल ॥ मोहे ॥ तारो तो पिया नित तुम तारो, बिन तरवेळू लीयो संजा ल ॥ मोहे ॥ १ ॥ कंचनको कहा कंचन करवो, मलिन कंचन परजाल ॥ मोहे ॥ कामक्रोध मदत पट रह्यो नित, महा मोहजंजाल ॥ मोहे ॥ २ ॥ मोय पापीकू पावन करवो, बहोत कठीन कृपाल ॥ मोहे ॥ मल्लिनाथ प्रनु मोहनी मूरति, रूपचंद गुण माल, करत निहाल ॥ मोहे ॥३॥ इति ॥ ॥ अथ झपन स्तवनं ॥ राग बिनास चरचरीमां ॥
॥ जाग जाग मुकुटमणि, नानिनृपनंदा ॥जा ॥ ए आंकण॥हार नगढे नर अमर सेवा करे,उच्चरे मुख जै जै जै जै नंदा ॥ जाण ॥ १ ॥ कमलदल मुकुल मांहि, मधुप रणजण करता, पिबत प्रीति धर सरस मकरंदा ॥ जा० ॥२॥ तिमिरहर सुख करण प्रग ट्यो, तरण मागध मधुर धुनी, पढत गुणबंदा ॥ जाम् ॥ ३ ॥ जायो मात मरुदेवी अलियत तुम जा वना, खेले उबंग ज्युं होत आनंदा ॥ जा ॥४॥ विमलगिरि मंमन छुःख विहंमन, कवि महिमराज के काटि फुःखफंदा ॥ जा० ॥ ५ ॥ इति ॥