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(२७६) ॥ अथ श्रीशत्रुजय स्तुति ॥ ॥ श्रीशत्रुजय गिरि तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार ॥ मंत्रमाहे नव कारज जाणुं, तारामां जेम चं वखापुं, जलघर मां जल जाणुं । पंखीमांहि जिम उत्तम हंस, कुल मांहि जिम खननो वंश, नानि तणो जे अंश ॥द मावंतमांहि जिम अरिहंता, तपशूरा मुनिवर महंता, शत्रुजय गिरि गुणवंता ॥ १ ॥ ऋषन अजित संनव अनिनंदा, सुमतिनाथ मुख पूनमचंदा, पद्म प्रन सुख कंदा ॥ श्रीसुपाव चश्मन सुविधि, शीतल श्रे यांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति शुदि॥ विम ल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु अर मनि नमुं एकांति, मुनि सुव्रत शुद्ध पंथि ॥ नमी पासने वीर चोवीश, नेम विना ए जिन वीश, सिगिरि अाव्या ईश ॥ ॥जरतराय जिन साथें बोले, स्वामी शत्रुजय गिरि कोण तोले, जिन, वचन अमोले ॥षन कहे सुणो नरत राय, बहरी पालता जे नर जाय, पातक नको थाय ॥ पशु पंखी जे णगिरि श्रावे,नव त्रीजे ते सिज थावे, अजरामर पद पावे ॥ जिनमतमें शेव॒जो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहि पाण्यो, सुणतां सुख नर आएयो ॥३॥ संघपति जरत नरेसर यावे, सोवन तणा प्रासाद करावे, मणिमय मूरति गावे ।। नाजिराया मरु देवी माता, ब्राह्मी सुंदरी वे हिन विख्याता,मूर्ति नवाणुं नाता ॥ गोमुख ने चक्के