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(२४) मंगावोने अंगी रचावो, घणों अबिर चडावो रे ॥चा लो० ॥ फूल मगावोने हार गुंथावो, प्रनुजीने कंठे चढावो रे ॥चा० ॥३॥ सुखड केशर चंदन घसावो, नवे अंगें पूजा करावो रे ॥ चा ॥ अगरनवेवो ने नावना जावो, नीचं नी शीश नमावो रे ॥ चा लो० ॥ ४ ॥ वेता सिंहासण दुकुम चलावे, नपर बत्र धरावे रे ॥चालो॥ खिमा विजय मुनि गुरु सुप साया, रुपन तणा गुण गाया रे ॥ चा ॥५॥
॥अथ श्रीसिमाचलस्तवनं ॥ ॥ चालो सखी सिमाचल जयें, चालो सखी वि मला चल जयें ॥ के गिरिवर देखी सुख लश्ये, के पा लिताणे जइ रहियें ॥चालो १॥के ए गिरि यात्रायें जे आवे, के नव जीजे सिदि जावे, के अजरामर पदवी पावे ॥ चालो ॥२॥ के यात्रा नवाणुं करियें, के नवकार लाख खरा गणियें, के नवसागर सहेजें तरिये ॥ चालो ॥ ३ ॥ के बह अहम काया कसि यें, के मोहराजा सामे धसियें, के वेगें शिवपुरमा वसियें ॥ चालो० ॥ ४ ॥ के सर्व तीरथनो ए रा जा, के सूरज कुंकमां जल ताजां, के रोगीया नर होय ते साजा ॥ चालो ॥ ५ ॥ के केशर चंदन घशी घोजी, के कस्तूरी बरास नेली, के पूजो सर्व मली टोली ॥ चालो० ॥ ६ ॥ के पूजीने जावना नावो, के केवलझान युगल पावो, के जो होये शिव पुरमां जावो ॥ चालो० ॥ ॥ के अढार अमोत्तेरा