________________
(१७६ )
प्रनुजीनुं देखतां रे. जोतां मुखनी ज्योति रे॥ उरित पमल दूरें कस्यां रे वारी, प्रगट्यो शान उद्योत ॥ ॥ वसी० ॥ १ ॥ सूरत मनडामां वसी रे, कागल जिम चित्राम रे॥ रात दिवस सुतां जागतां रे हुँतो, नित समलं प्रनुनाम ॥ वसी० ॥ २ ॥ जेहना मन मां जे वस्या रे, तेहने तेहयुं नेह रे ॥ मधुकरने मन मालती रे जिम, मोर तणे मन मेह ॥ वसी ।। ॥ ३ ॥ देव अवर देखी घणा रे, किहां न माने म न रे ॥ प्रमुगुण सांकलें सांकल्यो रे तेतो, अालोचे नही अन्न ॥ वसी० ॥ १ ॥ साहेब सुविधि जिणं दनी रे ढुं, चाहूं नवोनव सेव रे ॥ हंसरतन कहे माहरे रे कांइ, लागी एहज टेव ॥ वसी॥५॥इति॥
॥अथ केशरियाजीनुं स्तवन । ॥ केशरीयासें लाग्युं मारुं ध्यान रे, बीजुमुने कांड न गमे ॥के ॥ नानिनूप मरुदेवीको मंदन, तुम पर जीया खुरवान रे ॥ बीजुं० ॥ केश ॥ १ ॥ध नुप पांचशे मान मनोहर, काया कंचनवान रे ॥ ॥ बीजुं० ॥ के० ॥ २ ॥ जुगला रे धर्म निवारण साहिब, राजेश्वर राजान रे ॥ बीजुंग ॥ केशम् ॥ ॥३॥ षनदासकी आशा पूरजो, सेवक अपना जान रे ॥ बीजं ॥ केश ॥ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीमनीनाथ जिन स्नवनं ।। ॥चित्त को न गमे रे चित्त को न गमे, मस्निनाथ वि ना चित्त को न गमे ॥माता प्रनावती राणीको जायो,