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(२७७) कुंन नृपतिसुत काम दमे ॥म॥१॥कामकुंन जिम का मित पूरे, कुंनलंबन जिन सहुने गमे।म॥॥ मिथि ला नयरीमें जन्म प्रनुको,दरिसन खो कुःख शमे म॥ ॥३॥ घेवर नोजन सरसा पिररे, बाकस बूकस कोन जमे ॥ म०॥४॥ नीलवरण बनु कांति अंगें, मरक तमणि बबी दूर नमे ॥ म०॥५॥ न्यायसागर प्रनु जक्तनो स्वामी, हरि हर ब्रह्मा कोन नमे ॥म॥६॥
॥अथ अयवंती पार्श्व स्तवनं ॥ राग काफी॥
॥पंथीडा पंथ चलेंगो, प्रनु नजले दिन चार ।। ॥पंथी। क्या ले आया क्या ले जासी, पाप पुण्य दोनुं लार. ॥ पंथी॥१॥बालपनो तें तो खेल गमा यो, यौवन माया जालपंथी॥बूढापो आयो धर्म न पायो, पीछे करत पुकार ॥ पंथी॥शा ती माया फू ठी काया,तो सब परिवार ॥ पंथी० ॥दया मया कर पास अवंती, अब तेरो आधार ॥ पंथी॥३॥ इति ।।
॥अथ बनिनमुनिनी सद्याय ।। ॥शा माटे बंधव मुखयी न बोलो, अांसुडे या नन धोतां मुरारी रे॥ पुण्यजोगें दडियो एक पाणी, जड्यो ले जंगल जोतां मुरारी रे ॥ शा० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ त्रिकम रीश चढी छे तुऊने, वनमा हे वनमाली मुरारी रे ॥ वडीरे वारनो मनाईं बूं वाला, तुं तो वचन न बोले फरी वाली मुरारी रे ॥ शा॥२॥नगरी रे दाधी ने गुड़ न साधी, महारी वाणी निसुण वाला मुरारी रे॥ा वेलामां लीधो