________________
( २५२ )
शा, हरपें गाये रूपजदासा ॥ जग० ॥ १४ ॥ बारे मास करूं सेवा, कपनदेव मार्ग मेवा, देजो दीनत गा देवा || जग० ॥ १५ ॥ इति बारमासो संपूर्ण ॥ ॥ अथ सिद्धाचल स्तवनं ॥
॥ जात्रा नवाणुं करीएं शेत्रुंजा गिरि, जात्रा न वाणुं करीएं ॥ सहस कोडि जव पातक लूटे, शेत्रुंजा सामो मग नरीएं ॥ शे० ॥ जा० ॥ पूरव नवाणुं वार ॥ शे० ॥ जा० ॥ कूपन जिणंद समोसरीएं, पुंमगिरि ॥ जा० ॥ १ ॥ ए प्रकरणी । पुंमरीक पद जपी मन हर खे, अध्यवसाय शुन धरीयें ॥ शे० ॥ जा० ॥ सात बह दोय हम तपस्या, करी चटीए गिरिवरीयें || शे० ॥ जा० ॥ २ ॥ पडिक्कमणां दोय विधिशुं करीएं, पाप पफल परिहरीएं || शे० ॥ जा ० ॥ भूमि संथारो ना री तो संग, दूरथकी परिहरीएं || शे० ॥ जा० ॥ ३ ॥ एकल आहारी ने सचित्त परिहारी, गुरु सायें पद चरीएं || शे० ॥ जा० ॥ कलिकायें ए तीरथ मो हो, प्रवहण जेम जर दरीए || शे० ॥ जा० ॥ ४ ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कहे जव तरीएं ॥ शे० ॥ जा० ॥ ५ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ मालानुं गीत प्रारंभः ॥
॥ संघ पूछे फूल वाडीयें, माला कवण सो मा गनां फूल ॥ कवण सुगंधा जाणीएं, माला कवण सो फूलनुं मूल ॥ तुंबे माला कोण राजनी ॥१॥ चंपक केतकी केवडो, मालण सेवंत्री ने जासूल ॥ मा