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(२५३) लती मलकंतो मोघरो, मालण जाई अशोक अ मूल ॥ तुं मालम् ॥ ॥ कवणे रे चंपो वावीयो, मालए कवणे गुंथ्यां एनां फूल ॥ कवण मला रें लइ मूलव्यां, मालण केणे चढाव्यां अमूल ॥ सा ची मालण जिनराजनी॥ ए आंकणी ॥३॥ मा लिये चंपो वावीयो, मालण चतुरें गुंथ्यां एनां फूल ॥ नविक मलारें लश् मूलव्यां, मालण प्रनुने चडाव्यां अमूल ॥ सा ॥४॥ कहे रे मालण सुगो नविजनो, एणी वाडीए ने बदु फूल ॥ सरस सुगंधां जाणीएं, तेहमां चंपक कली ले अमूल ॥ सा ॥ ५ ॥ शेवं जा गिरिवर नेटवा, मालण श्राव्यो बे कबनो संघ॥ देशावडी श्रावक वसे, तेहमां संघमुखी मानसिंघ ॥ सा० ॥ ६ ॥ नरनव दोहिलो पामीने, मालण पूज वा आदि जिणंद ॥ सफल जनम करी सुबहो, माल ए लेशे परमानंद ॥ सा ॥ ७ ॥ सत्तरनेद सुविधे करी, मालण साहामिवत्सल सोनाय ॥ सौजाग चं सुगुरु लही, मालण स्वरूपचं गुण गाय ॥सा॥७॥
॥ अथमहावीर जिनस्तवनं ॥ ॥ वीर कुमरनी वातडी,केने कहियें। हारे केने क हियें रे केने कहियें ॥नवि मंदिर बेसी रहियें, हारे सु कुमार शरीर ॥ वी० ॥१॥ए अांकणी ॥ बालपणा थीलामको नृप जाव्यो, हारे मत्ती चोशन इंडें मल्हा व्यो । इंशाणी मली दुलराव्यो, हारे गयो रमवा काज ॥ वी० ॥॥ बोरु नबग बलां लोकनां केम र