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(२५१) जिनवरने नजीएं॥ विषय कषाय कपट तजीएं। ज गत ॥ १॥ ए बांकणी ॥ कार्तिकें केसरीयो मलशे, जनम जनमनां उःख टलशे, माहारा मन वंबित फलशे॥जगण॥॥ मागशिरे मन मोडुं माहारूं,के तुरत दरिसण थयुं ताहालं, ताहरी सूरत पर वारु वारु॥ज ग ॥ ३ ॥ पोपें प्रीतडली पालो, त्रण नुवनमाहे अजुआलो, तुमे बो दीन तणा दयालो ॥ जगण॥३॥ माहा शुदि पंचमी दिन आवे, मोरली सदुको बंधावे, गुणी जन राग वसंत गावे ॥ जग ॥५॥ फागुणे फा ग खेलूं तुमयुं, केसर कस्तूरी रमगुं, विलेपन करी सदा नमसुं॥ जग ॥ ६ ॥ चैत्रे चित्त लागुं चर णे, फूल गुलाल मुगट जरणे, सेवा तारण ने तरणे ॥ जग ॥ ७ ॥ वैशाखें फूली वनराई, त्रीजनी अारखा त्रीज आई, केशरीयागुं साची सगाई ॥ जग ॥ ७ ॥ जेजें जिन पासें आवं, के शीतल जल लई न्हवरा वू, पंखो करतां पुण्य पावें ॥ जग ॥ ॥ आपाढें मे घ घणा गाजे, ढोल मृदंग तिहां वाजे, एणे दरवारें सदा बाजे ॥ जग ॥१०॥ श्रावण वरसे अति सारो, बपैया मोर दाउर प्यारो, गुणीयल गाये मली सारो ॥ जग ॥ ११ ॥ श्रावणे सरव डियां वरसे, बपेया मोर दाउर पीसे, गुणिजन राग मन्हार गाशे ॥ जग ॥१॥ नाश्वे नविक करो जगति, परव पजू सण करो जुगति,पूजा जणावो नलि युगति ॥ जग ॥ ॥१३॥ आशोयें पूरीजें आशा, घर घर दीपक बदु था