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________________ (२५०) रे, वाला उपजे ही अपार रे ॥वा ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीवीर जिन स्तवनं ॥ ॥ नारे प्रनु नही मानु ॥ नही मानुं रे अवरनी आण॥नारे प्रण ॥ महारे ताहारं वचन प्रमाण ।। ना रे प्रनु ॥ ए आंकणी ॥ हरिहरादिक देव अनेरा, ते दीठा जगमाय रे ॥नामिनी नरम नृकुटीयें नूल्या, ते मुजने न सुहाय ॥ नारे ॥ १ ॥ केश्क रागीने केश्क हेपी, केशक लोनी देव रे ॥ केशक मदनाया मां नरिया, केम करीएं तसु सेव ॥ नारे ॥ २ ॥ मुश पण तेमां नवि दीसे प्रनु, तुजमांहेली तिल मा त रे ॥ ते देखी दिलडं नवि रीके, शी करवी तेहनी वात ॥ नारे ॥३॥तुं गलि तुं मति तुं मुफ प्रीतम, जीव जीवन आधार रे ॥ रात दिवस स्वपनांतर तुंही, तुं माहारे निरधार ॥ नारे ॥ ४ ॥ अवगुण सद् नवेखीने प्रनु, सेवक करीने निहाल रे ॥ जग बंधव ए विनती मोरी, माहारां सवि कुःख दूरें टाल ॥ नारे ॥ ५ ॥ चोवीशमा प्रनु त्रिनुवन स्वामी, सि दारथना नंद रे ॥ त्रिशलाजीना न्हानडीया प्रनु, तुम दी। अति आणंद ॥ नारे ॥ ६ ॥ सुमति विजय कवि रायनो रे, रामविजय कर जोड रे ॥ उपगारी अरिहंतजी, माहारा नव नवना बंध बोड ॥नारे॥७॥ ॥ अथ षन देवजीनो वारमासो ॥ ॥प्रथम जिणंद प्रणमुं पाया, जननी मरुदेवी जाया ॥ षनजी धूलेवा नगर राया, जगत गुरु
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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