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(२४ए) मैदल गंजीयो रे जो॥५॥ श्रीविधिपदें देहरे मुंदरा नयर मकार जो, प्रांगी रे नवरंगी शिखर सोहा मणी रे जो॥ ए तो तेजें दीपे जग मग ज्योति विशा ल जो, सोहें रे मनमोहे मूर्ति रलियामणी रे जो ॥ ६ ॥ श्रीसत्तरएकाशीएं रूडो नाश्व मास जो, स्तवन रच्यु ए प्रेमें पर्व पजूसणे रे जो ॥ श्रीसहज सुंदर शिष्य बोले एणी परें वाणी जो, नावें रे नित्य लान कहे हरपे घणे रे जो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ सुमतिजिन स्तवनं ॥ ॥ वाला मुमति जिणेसर सेवीएं रे, वाला सुम ति तणा.टो दातार रे ॥ वाजां रे वाजे धर्मनां रे ॥वा ला मेघराया सुत सुंदरू रे, वाला मंगला मात म व्हार रे ॥ वाजां रे वाजे धर्मनां रे ॥ ए आंकणी॥ ॥ १ ॥ वाला मंगलवेल वधारवा रे, वाला नमह्यो ने ए जलधार रे ॥ वा ॥ वाला रूप अनोपम जि नत' रे, वाला मनमोहन सुखकार रे ॥ वा० ॥ २ ॥ वाला सोवन वान शरीरनो रे, वाला श्वा कुवंश वधार रे॥ वा० ॥ वाला देई प्रनुदान संवबरी रे, वाला सीधो ने संजमनार रे ॥ वा० ॥ ३ ॥ वाला आठ करम अरि जीतिने रे, वाला पोहोताचे मुक्तिमकार रे ॥ वा० ॥ वाला पूरव लाख चालीश नुं रे, वाला जीवित जेहन सार रे ॥ वा० ॥ ४ ॥ वाला माणक मुनिमन रंगगुं रे, वाला चाहे डे सुमति देदार रे ॥ वा ॥ वाला एहवा प्रनु गुण गायवा