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(२२४) सी सवाद के ॥ नि० ॥ ॥ चनद पूरवधर मुनिवरा, निश करता हो गया नरक निगोद के ॥ अनंतोष नंत काल तिहां रहे, इम बगडे हो कांइधरमनो मो द के ॥ नि० ॥३॥ जोरावर घणा जालमी, यमरा जा हो कांइ सबल करूर के ॥ निजसेन्या लश् चिटुं दिशे, किम जागता हो नर कहीयें शूर के ॥ नि॥ ॥४॥ जागतडां गंजे नही, तराये हो नर सूतो नेट के ॥ सूतारिण। पामा जण्या, किम कीजें हो शा पुरुपनी नेट के ॥नि ॥ ५ ॥ श्रीवीरें इम नारवीयुं, पंखी नारंम हो न करे परमाद के ॥ तेह तणीपरें विचरजो, परिहरजो हो गोयम परमाद के ॥नि ॥ ६ ॥ वीर वचन श्म सांजली, परिहरियो हो गोयमें परमाद के ॥ लीला सुख लाधां घणां. थि र रहियो हो जगमा जसवाद के ॥ नि०॥ ७ ॥ निंद निंडी मंत आणजो, सुश रहेजो हो सदुको सा वधान के ॥ ध्यान धरम हिये धारजो, इम नारखे हो मुनि कनकनिदान के ॥ नि ॥ ॥ इति ॥
॥अथ सिचक्रजीतुं स्तवन ॥ ॥ तुमें पीतांबर पहेयां जी, मुखने मरकलडे ॥ए देशी॥
॥श्रीसिदचकने वंदोजी, मनोहर मनगमता ॥ जे अविचल सुखनो कंदोजी ॥ मनो० ॥ मास या शोयें मधुरें सोहावे जी ॥ मनो० ॥ नवि यादरो तमें जने नावें जी ॥ मनो॥१॥ नव यांबिल तप कीजें जी ॥म ॥ तो अविचल सुखडां लीजें जी॥