________________
बी ( २२४ )
॥ २ ॥ निःस्नेही प्रीत, म करजो को सही ॥ पतंग जलावे देह, दीपक मनमें नही | वाहाला माणस नो विजोग, म होजो केहने ॥ साले रे साल समा न, हश्यामां तेहने || ३ || विरह व्यथानी पीड, जो बन व प्रति दहे ॥ जेनो पियु परदेश, ते माणस डुःख सहे ॥ कुरि कुरि पंजर कीध, काया कमलज जिसी ॥ हजिय न श्राव्यो नेम, मनि न नयणें ह सी ॥ ४ ॥ जेहने जेहगुं राग, टाल्यो ते नवि टजे ॥ चकवा रयणी विजोग, ते तो दिवसें मजे । यांवा केरो स्वाद, लिंबू ते नवि करे || जे नाह्या गंगा नी र, ते बिल्लर किम तरे ॥ ५ ॥ जे रम्या मानती फ्र ल, धतूरे किम रमे ॥ जेहने घृतशुं प्रेम ते, तेजें किम जिमे ॥ जेहने चतुरगुं नेह ते, अवर ने शुं करे || नवजोबन तजी नेम, वैरागी थ फरे | ॥ ६ ॥ राजुल रूपनिधान, पहोती सहसाव ने ॥ जइ वांद्या प्रभु नेम, संजम लेइ एक मनें ॥ पा म्यां केवल ज्ञान के, पहोती मननी रली ॥ रूपविजय प्रभु नेम, नेटे याशा फली ॥ ७ ॥ इति ॥
•
॥
॥ अथ निड्डीनी सिवाय प्रारंभः ॥
॥ निड्डी वेर हुइ रही, किम कीजें हो सा पु रुप निदान के ॥ चोर फरे चिहुं पासथी, किम सूता हो कां दिन ने रात के ॥ नि० ॥ १ ॥ वीर कहे सु यो गोयमा, मत करजो हो एक समय प्रमाद के ॥ जरा यावे यौवन गले, किम सूता हो कां कवण