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शीयल तजो मन दंन ॥ १७ ॥ तेल तक घृत दूध ने दहिं, उघाडां मत मेलो सही || उत्तम ठामें खर चो वित्त, पर उपगार करो शुनचित्त ॥ १८ ॥ दिव स चरिम करजे चोविहार, चारे आहार तणो परि हार || दिवस तणां खालोए पाप, जिम नांजे सघ ला संताप ॥ १९ ॥ संध्यायें आवश्यक साचवे, जि नवर चरण शरण नवनवे ॥ चारे शरण करी दृढ होय, सागरी अणसण जे सोय ॥ २० ॥ करे म नोरथ मन एहवा, तीरथ शेजे जायवा ॥ समेत शिखर बाबू गिरनार, नेटीश हुं धन धन अवतार ॥ २१ ॥ श्रावकनी करणी बे एह, एहथी थाये न वनो बेह ॥ याठे कर्म पडे पातलां, पाप तथा छूटे यामला ॥ २२ ॥ वारु लहियें अमर विमान, अनु कमें पामे शिवपुर ठाम ॥ कहे जिनदर्ष घणे ससने ह, करणी दुःखहरणी ने एह ॥ २३ ॥ इति ॥ ॥ श्रीनेम राजुलनी सवाय ॥
॥ नदी जमुनाके तीर, उमे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ || पियुज | पियुजी रे नाम, जपुं दिन रातियां ॥ पियुजी चाव्या परदेश, तपे मोरी बातीयां ॥ पग प ग जोती वाट, वालेसर कब मिले | नीर विबोयां मीन, के ते ज्युं टलवले ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज, साहिब विल नवि गमे ॥ जिहां रे वालेसर नेम, तिहां मारुं मन जमे ॥ जो होवे सऊन दूर, तोही पासें वसे ॥ किहां पंकज किहां चंद, देखी मन उनसे