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(१९३) ॥ अथ श्रीमन्निनाथस्तवनं ॥ ॥ थारा मोहोला ऊपर मेह० ॥ए देशी॥ ॥ सुणी सुगुरु नपदेश, ध्यायो दिलमें धरी ॥ हो लाल ॥ ध्या॥ कीधी नगति अनंत, चवि चवि चा तुरी॥हो लाल ॥च० ॥सेव्यो विशवावीश, उलट धरी उलग्यो ॥ हो लाल ॥१०॥ दीठो नवि दीदार, कान कीगही लग्यो होलाल ॥का॥ १ ॥ परमे सरगुं प्रीत, कहो किम कीजीयें ॥ हो लाल॥क० ॥ निमिष न मेले मीट, दोष किरा दीजीयें ॥ हो ला ल॥दो०॥ कोण करी तकसीर,सेवामां साहिबा ॥ हो लाल ॥से॥कीजें न बोकरवाद, जगत नरमायवा ॥ हो लाल ॥ न० ॥ ॥ जाण्युं तमालं जाण, पुरुष ना पारि ॥ हो लाल ॥पुण॥ सुगुण नीगुणनो न्या य, करो झुं सारि ॥ हो लाल ॥ क० ॥ दीधो दी लासो दीन, दयाल कहावशो ॥ हो लाल ॥ द० ॥ करुणारस नंमार, बिरुद किम पावशो ॥ हो० ॥ बि० ॥३॥ शुं निवस्या तुमें सिह, सेवकने अव गुणी ॥ हो० ॥ से० ॥ राखो अविहड प्रीति, जावा यो नोलामणी॥हो जा॥ जो कोइ राखे राग, नीराग न राखीएं ॥ हो॥ नी० ॥ गुण अवगुणनी वात, कही प्रनु नांखीएं ॥ हो० ॥क० ॥ ४ ॥ अ मचा दोष हजार,तिके मत नालजो॥ हो ॥ ति ॥ तुमें बो चतुर सुजाण, प्रीति गुण पालजो ॥ हो । प्री० ॥ मन्निनाथ महाराज, म राखों अांतरो॥हो॥
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