________________
(१२) धामी अलख अगोचरु ॥ कां दीठा विण दीदार ॥ केम पतीजे कीजें हो किम लीजें फल सेवा तणुं ॥ कां दीसे न प्राण बाधार ॥ अ॥ ॥ ज्ञानवि नाकू पेखे हो संखे सूत्रं सांजव्यो । कांइ अथवा प्रतिमारूप ॥ सांगें जो संपेखं हो प्रनु देखुं दिलनर लोयणें, कां तो मन महचे चूप ॥३॥ अ ॥ जगनायक जिनराया हो मन जाया मुज आवी म व्या, कांश महेर करी महाराज, सेवक तो ससनेही हो निसनेही प्रनु किम कीजियें॥कांश सडोइवहीयें रे लाज ॥ ४ ॥ अ० ॥ नक्तिगुणें जरमावी हो सम जावी प्रनुजीने जोलवी, कांइ रा हृदयमकार ॥ तो कहेजो शाबासी हो प्रनु नासी जाणी सेवना. कांइ ए अमचो एक तार ॥ ५॥ अ० ॥ पाणी नी रने मेले हो किण खेले एकंत होइ रहूं, कांश नहिरे मीलनो जोग ॥ जो प्रनु दे नयरों हों कहि व यण समजावू सहि, कांइ ते न मिले संजोग ॥ ६ ॥ अ० ॥ मनमेनु किम रीफ हो कीजें अंतर एव डो, कांद निपट निहेजा नाथ ॥ सात राजने अंतें हो किण पाखे ते आवीने मिटुं, कांश विकट तुमारो जी साथ ॥ ७ ॥ अ० ॥ उलग ए अनुनवनी हो मुफ मननी वातां सांजली, कांश कीजें आज निवाज ॥ रूपविबुधनो मोहन हो मनमोहन सांजल वीनति, कां दीजें शिवपुरराज ॥ ७ ॥ अ॥ इति ॥