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म० ॥ द्यो दरिसिए दिल धार, मिटे ज्यूं खांतरो ॥ हो० ॥ मि० ॥ ५ ॥ मनमंदिर महाराज, बिराजो दिल मली । हो० ॥ बि० ॥ चंद्रातप जिम कमल, हृदय विकसे कली ॥ हो० ॥ हृ० ॥ कविरूप विबुधसुप साय, करो अमरंग रली " हो० ॥ कहे मोहन कवि राय, सकल आशा फली ॥ हो० ॥ स०॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री मुनिसुव्रत जिनस्तवनं ॥ || हो पीयु पंखीडा ॥ ए देशी ॥
॥ हो प्रभु मुऊ प्यारा न्यारा थया के रीत जो, लग्याने यालालुंबन नाहरो रे लो ॥ हो० ॥ नक्तिवबल जगवंत जो, प्राय वस्यो मन मंदिर सा हिब माहरो रे जो ॥ १ ॥ हो० ॥ खिए न विसारं तुऊ जो, तंबोलीना पान ती मरें फेरतो रे लो ॥ हो० ॥ लागी मुने माया जोर जो, दियरवासी सुसाहिब तुमने हेरतो रे जो ॥ २ ॥ हो० ॥ तुं नि सनेही जिनराय जो, एकपख। प्रीतलडी किल परें राखीयें रे लो ॥ हो० ॥ अंतर्गतनी महाराज जो, वातडली विए साहिब केहते दाखीयें रे लो ॥ ३ ॥ हो० ॥ अलख रूप य याप जो, जाइ वस्यो शिव मंदिरमांहे तुं जई रे लो ॥ हो० ॥ लाधो तुमारो नेद जो, सूत्र सिद्धांतें गति में साहिब तुम लइ रे लो ॥ ४ ॥ हो० ॥ जग जीवन जिनराय जो, मुनि सुव्रत जिन मुजरो मानजो माहरो रे जो ॥ हो० ॥ पय प्रणमी जिंनराय जो, जब नवसरलो साहिब