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॥ अथ श्री रामविजयजीकृत चोवीश जिन ॥ ॥ स्तवन प्रारंभः ॥
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॥ तत्र ॥
॥ प्रथम श्री कृपन जिन स्तवन ॥
॥ योग माया गरवे मे जो ॥ ए देशी ॥ उलगडी यादिनाथनी जो, कांइ कीजियें मनने कोम जो ॥ ats करे को नाथनी जो, जेहना पाय नमे सुर कोड जो ॥ ० ॥ १ ॥ वादालो मरुदेवीनां नाडलो जो, राणी सुनंदाना हयानो हार जो ॥ त्रस्य नुव ननो नाहलो जो, महारा प्राण तपो आधार जो ॥ ० ॥ २ ॥ वाहाले वीश पूरव लख जोगव्युं जो, रूडुं कुमरपणुं रंगरेल जो ॥ मन मोलुं रे जिन रूपशुं जो, जाणे जगमां मोहन वेज जो ॥ ल० ॥ ३ ॥ प्रजुनी पांचों धनुषनी देहडी जो, लख पूरव त्रेशवराज जो ॥ लाख पूरव समता वरी जो, थया शिव सुंदरीवरराज जो ॥ उल० ॥ ४ ॥ एना नामथी नव निधि संपजे जो, वली अलिय विधन सवि जाय जो ॥ श्री सुमतिविजय कविराजनो जो, एम रामविजय गुण गाय जो ॥ उल० ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनं ॥ ॥ सोना ते केंरुं महारुं बेडलुं रेलो, रूपला इंढोली