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हाथ, महारा वाहालाजी रे || हवे नहीं जाउं मही dear रेलो || ए देशी ॥
॥ अजित जिनेसर साहिबा रेलो, वीनतडी अव धार ॥ महारा वाहालाजी रे ॥ दवे नहीं बोडुं तारी चाकरी रेलो ॥ तुं मनरंजन महारो रेलो, दील डानो जापहार || महा० ॥ ६० ॥ १ ॥ लाख चो राशीहुं नम्या रेलो, काल अनंत अनंत ॥ ० ॥ ञ लग लीधी में ताहेरी रेलो, जांगी बे जव ती जांत ॥ माह॥२॥ करि सुनजर हवे साहिबा रेलो, दास धरो दीलमांहि ॥ म० ॥ लाख गुण हीन पण ता हरो रेलो, सेवक हुं महाराज ॥ म०॥ ६० ॥ ३ ॥ अव गुण गणतां माहरा रेलो, नही यावे प्रभु पार ॥ म० ॥ पण जिन प्रवहणनी परें रेलो, तुमें बो तारण हार ||माह ॥४॥ नयरी अजोध्यानो धणी रेलो, विजया जयरें सरहंस ॥ म० ॥ जितशत्रु रा यनो नंदनो रेलो, धन इक्ष्वाकुनो वंश ॥माह ॥ ॥ ५ ॥ धनु सय साढा चारनी रेलो, देहडी रंग स नूर ॥ म० ॥ बोहोंतेर पूरव लाखनुं रेलो, आयु अ धिक सुख पूर ॥ ० ॥ ० ॥ ६ ॥ पंचम यारे तुं मल्यो रेलो, प्रगट्या बे पुण्य निधान ॥ म० ॥ सुमति सुगुरु पद सेवतां रेलो, राम अधिक तनुवान ॥मनाह ॥ ॥ ॥ अथ श्री संभव जिन स्तवनं ॥
॥ तुने गोकुल बोलावे कहान, गोविंद गोर । रे ॥ यालोने महीनां दाग, न करो चोरी रे ॥ ए देशी ॥