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जीत्यो श्राप सहाय, हांजी जीत्यो जीत्यो ग्यान प साय, हांजी जीत्यो जीत्यो ध्यान दशाय, हांजी जीत्यो जीत्यो जग सुखदाय ॥ म०॥ अनंतानुबंधी वड योवा, हणीया पहिली चोट || मंत्री मिथ्यात पढें तिगरूपी, तव करी यागल दोट ॥ २ ॥ म०॥ नांजि हेड आयुष तिग केरी, इग विगलिंदिय जाति ॥ एह मेवासि जांज्यो चिरकाली, नरकयुगल संघाति ॥ ३ ॥ म० ॥ यावर तिरि डुगजांसि कटावी, साहारण हणी धाडी ॥ श्री श्रीतिग मदिरा वयरी, यातप उद्योत न खाडी ॥ ४ ॥ म० ॥ पञ्चरकाणा ने पञ्चरकाला, हणीया यो श्राव || वेद नपुंसक स्त्री सेनानी, प्रति बिंबित गया नाठ ॥ ५ ॥ ० ॥ हास्य रति परति शोक गंबा, जय एद् मोह खवास ॥ हणीया पुरुष वेद फोज दारा, पढ़ें संजलनो नाश ॥ ६ ॥ म०॥ निश दोय मोह पटराणी, वरमांथी संहारी। अंतराय दरिसणने ग्याना, वरणीय लडतां मारी ॥ ७ ॥ म० ॥ जय जय दु मोहज मुने, हू तूं जगनाथ ॥ लोकालोक प्रकाश थयो तव, मोह चलावे साथ ॥ ८ ॥ म० ॥ जीत्यो तिम जगतने जीतावे, मूकायो मूकावे ॥ तरण तारण सम रथ बे तूंही, मानविजय नित्य ध्यावे ॥ ए ॥ म०॥ ॥ इति महावीर जिन स्तवनम् समाप्तम् ॥ तत्समा तोयं उपाध्याय श्री मानविजयजी कृत चोवीशी संपूर्णा ॥