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(१४६) नाल रे ॥ ७ ॥ सा० ॥ ध्यान धाराशर वर्षतो. हणी मोह थयो जगनाथ रे ॥ मान विजय वाचक वद. में ग्रह्यो ताहरो साथ रे ॥ ए॥ सा० ॥ इति ॥ . ॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ देदु देदु नणद हठीली ॥ ए देशी ॥ श्री पा सजी प्रगट प्रनावी, तुक मूरति मुफ मन नावी रे॥ मनमोहना जिनराया। नर नर किन्नर गुण गाया रे॥ म० ॥ जे दिनथी मूर। दीती, ते दिनथी आपद नीठी रे ॥ १ ॥ म ॥ मुख मटकालुं सुप्रसन्न, देख तरीके नविमन्न रे॥ म॥ समतारस केरां कचोलां, नयणां दी। रंगरोलां रे ॥ २ ॥ म० ॥ हायें न धरे हथीयार, नही जपमालान! प्रचार रे ॥ म० ॥ न त्संगें न धरे वामा, जेहथी उपमे सवि कामा रे । ॥३॥ म० ॥ न करे गीत नृत्यना चाला, एतो प्र त्यद नटना ख्यालो रे ॥ म० ॥ न चजाचे या वाजां, न धरे वस्त्र जीरण नाजां रे ॥ ४ ॥ म० ॥ इम मूरति तुफ निरुपाधि, वीतरागपणे करी साधी रे॥म ॥ कहे मानविजय उवकाया, में अवलंव्या तुऊ पाया रे ॥ ५ ॥ म० ॥ २३ ॥ इति ॥
॥अथ श्री महावीर जिन स्तवनं ॥ ॥ हेमराज जग जस जीत्यो ॥ ए देशी ॥ शा सन नायक साहिव साचो, अतुली बल अरिहंत ॥ कर्म अरिवल सबल निवारी, मारीय मोह महंत ॥ ॥ १ ॥ महावीर जगमां जीत्यो जी॥ हांजी जीत्यो