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लाल ॥क० ॥१॥हीस्या विण किम गुरू, स्वनावनें बता॥ हो लाल ॥स्व०॥ हा विण तुफ नाव, प्र गट किम प्रीबता ॥हो लाल ॥प्र॥ प्रीव्या विणु कि म ध्यान, दिशामांहि लावता॥ हो लालादि॥ लाव्या विण रस स्वाद, कहो किम पावता॥हो लाल ॥क०॥ ॥२॥ नक्ति विना नवि मुक्ति, दुईको नक्तने ॥ हो लाल ॥ दु० ॥ रूपी विना तो तेह, दुवे किम व्यक्तने ॥हो लाल ॥ दु० ॥न्हवण विलेपन माल, प्रदीपनें धू पणां ॥होलाल ॥प्र०॥ नव नव नूषण नाल, तिलक सिर खूपणा ॥ हो लाल ॥ ति ॥३॥ अम सत्य पु एयने योगे, तुमें रूपी थया ॥ हो लाल ॥ तु०॥थ मिय समाणी वाणी, धर्मनी कहो गया॥हो लाल ॥ ध०॥ तेह आलंबने जीव, घणाये बूजीया॥हो लाल।। घ॥ नावि नावने झाने,अमो पण रीजीया॥होला ल॥॥ते माटे तुऊ पिम,घणा गुण कारणो॥ हो लाल ॥ १० ॥ सेव्यो ध्यायो दुबे, महानय वा रगो॥हो लाल॥म० ॥शांतिविजय बुध शिष्य, कहे नविका जना॥हो लालक०॥प्रनुनुं पिमस्थ ध्यान, करो थकमना ॥हो लाल ॥ क० ॥ ५॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रनजिन स्तवनं ॥ ॥ वारि हुँ गोडी पासनी ॥ ए देशी ॥ श्रीपदम प्रनना नामने, ढुं जावं बलिहार ॥ नविजन ॥ नाम जपंतां दीहा गमुं, नवजय नंजन हार ॥ न ॥१॥ श्री० ॥ ए आंकणी ॥ नाम सुगत मन उनसे, तो