________________
(१३५) एह मोहोटो माहारो, अचिंत्यो थयो दरिसण ता हारो॥१॥सा॥ देखत देव हरी मन सीधुं, काम रागारे कामण कीg ॥ सा॥ मनई जाये नही को पासें, रात दिवस रहे ताहरी आसें ॥ २ ॥ सा॥ पहिर्बु तो जाण्यं हतुं सोहि,पण मोहोटामु मिलतुं दोहिनूं । सा० । सोहिनू जाणि मनडुं वल गू, थाये नही हवे कीधुं अलगू ॥३॥ सा० ॥ रूप देखाडी तुं होय अरूपी, किम ग्रहिवाये अकलस रूपी ॥ सा ॥ ताहरी धात न जाणी जाये, कहो मनडानी शी गति थाये॥४॥ सा॥ पहिलु जागी पडे करे किरिया, ते परमारथ सुखना दरीया॥सा॥ वस्तु अजाणे मन दोडावे, तेतो मूरख बदु पितावे ॥५॥ सा ॥ ते माटे तूं रूपी अरूपी, गुड़बुझने सिम सरूपी ॥सा॥ एह स्वरूप ग्रहीयुं जब तहालं, तव चम रहित थडे मन महारुं ॥६॥सा॥तुज गुण ग्यान ध्यानमा रहीयें, इम हिलवू पण सुलनज क हीयें ॥ सा ॥ मानविजय वाचक प्रनु ध्याने, अनु जव रसमां हल्यो एकताने ॥ ७ ॥ सा ॥ इति ॥
॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ थारा मोहोला उपर मे ॥ ए देशी ॥ रूप अ नुप निहालि, सुमति जिन ताहीं॥हो लाल ।। सु॥ बंमी चपल स्वनाव, तमु मन माहीं॥हो लाल ॥3॥ रूपी सरूप न होत जो, जग तुज दीसतूं ॥हो लाल ॥ जो० ॥ तो कुण उपर मन्न, कहो यम हींसतूं ॥ हो