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(११६) शो तो तुमही नलु, जीजा तो नवि जाचूं रे ॥ वाचक यश कहे सांगं, फलशे ए मुफ साचूं रे ॥सं० ॥५॥
॥अथ श्रीअनिनंदन जिन स्तवनं ॥ ॥सुणजो हो प्रनु० ॥ ए देशी ॥ दीठी हो प्रनु दीठी जग गुरु तुज ॥रति हो प्रनु, मूरति मोहन वेलडीजी॥ मीठी हो प्रनु, मीठी ताहरी वाणी॥लागे हो प्रनु, लागे जेसी सेलडी जी॥१॥ जाणुं हो प्रनु, जाणुं जन्म कयब ॥ जो हो प्रनु, जो तुम साथें मिल्योजी ॥ सुरमणि हो प्रनु, सुरमणि पाम्यो हा॥
आंगणे हो प्रनु, आंगणे मुफ सुरतरु फल्यो जी॥२॥ जाग्यां हो प्रनु, जाग्यां पुण्य अंकूर ॥ माग्या हो प्रनु, मुह माग्या पासा ढव्याजी॥ वूठा हो प्रनु, वूता अमि रस मेह ॥ नाना हो प्रनु, नाठा अगुन शुज दिन व ल्याजी ॥३॥ नूरख्यां हो प्रनु, नृख्यां मल्यां घृत पूर ॥ तरश्यां हो प्रनु, तरश्यां दिव्य उदक-मिल्यां जी॥ थाक्यां हो प्रनु, थाक्यां मिव्या सुख पाल ॥ चाहतां हो प्रनु, चाहतां सजन हेजें हल्या जी॥ ४ ॥ दीवो हो प्रनु, दीवो निशाविन गेह॥साथी हो प्रनु, साथी थलें जलनौका मलि जी ॥ कति जुगें दो प्रजु, कलि जुगें उनहो मुफ ॥ दरिसन हो प्रनु, दरिसन सह्यु आशा फली जी॥ ५ ॥ वाचक हो प्रनु, वाचक यश तुम दास ॥ वीनवे हो प्रनु, वीनवे अनिनंदन सुणो जी ॥ कहिये हो प्रचु, कहियें म देशो लेह ॥ देजो हो प्रनु, देजो सुख दरिसण तणो जी ॥ ६॥ इति ॥