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॥ अथ श्रीसुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ झांकरीया मुनिवरनी देशी ॥ सुमति नाथ गुणा मिलीजी, वाधे मुफ मन प्रीति : तेल बिंड जिम वि स्तरे जी, जलमांहे नलि री ॥ सोजागी जिनगुं लागो अविहलरंग ॥१॥ जनमु जे प्रीतडीजी, बानी ते न रखाय ॥ परिमल कस्तूरी तणो जी, महि माहें महकाय ॥ सोनागी ॥५॥ आंगलियें नवि मेरु ढकायें, बावडियें रवि तेज ॥ अंजलिमां जिम गंग न माहे, मुफ मन तिम प्रनु हेज ॥ सो ॥३॥दु लिपे नहिं अधर अरुण, जिम खातां पानसुरंग ॥ पीवत जरजर प्रनु गुणप्याला, तिम मुफ प्रेम अनंग ॥ सो ॥ ४ ॥ ढांकी इदु पलालगुं जी, न रहे लहि विस्तार ॥ वाचक यश कहे प्रनु तणोजी, तिम मुक प्रेम प्रकार ॥ सो० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ सहज सलूणा हो साधुजी ॥ ए देशी ॥ पद्म प्रन प्रनु जिन जअलगा रह्या,जिहांथी नावे खोजी ॥कागलने मशि तिहां नवि संपजे,न चले वाट विशेषो जी॥ सुगुण सनेहा रे कदिय न वीसरे ॥ ए यांक गी॥१॥ इहांथी तिहां जई को आवे नही, जेह कहे संदेशो जी ॥ जेहनुं मिलतुं रे दोहिर्बु तेहगुं, ने ह ते आप किलेशो जी ॥सुगुण॥॥ वीतरागगुं रे राग ते एकपखो, कोजें कवण प्रकारो जी॥ घोडो दोडे रे साहेब वाजमां, मन नारों असवारो जी॥