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दर्शन-प्रतिमा-ग्यारह प्रतिमाओं में प्रथम बग; निर्मल ___ सम्यग्दर्शन ; उद्विग्नता एवं कद्राग्रह से मुक्त निःशल्य
आराधना। दर्शनमोह-क्षपक-जिसमें दर्शन-मोह का क्षय करने योग्य
विशुद्धता प्रकट होती है। दर्शन-मोहनीय-तत्त्व-श्रद्धा का प्रतिवन्धक कर्म-विशेष । दर्शनावरण-कर्म-विशेष ; सामान्य ज्ञान का आवरक कर्म । दर्शनाचार-निःशंका, निष्काक्षा आदि सम्यक्त्व-गुणों को
आचरण में मुखर करना। दार्शनिक-श्रावक की उत्कृष्ट भूमिका , सम्यग्दर्शन एवं पच
परमेष्ठी का अनन्य उपासक । दंश-मशक-परीपह-डाँस, मच्छर आदि द्वारा परेशान किए
जाने पर भी उनका प्रतिकार न करना। दानान्तराय-सुविधा सम्पन्न होते हुए भी दान देने के लिए
उत्सुकता का अभाव। दान्त-इन्द्रियों और कषायों का दनन करने वाला साधक । दिगम्बर जैन-धर्म के प्रमुख दो आमनायों में एक ; नग्न साधु ।
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