________________
शायिक चारित्र-यथाख्यात चारित्र , चारित्र मोहनीय कर्म
के सम्पूर्ण क्षय से उत्पन्न होने वाला चारित्र । शायिक ज्ञान-केवलज्ञान । शायिक दान-दान देते समय वाधा की उपस्थिति । सायिक-सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी चार कषाय, सम्यक्त्व,
मिथ्यात्व और सम्यग् मिथ्यात्व-इन सात प्रकृतियों के
आत्यन्तिक विनाश से प्रादुर्भूत विशुद्ध सम्यक्त्व । सायोपशमिक-चारित्र-कषायो के विनाश एव दमन से
आत्मा में विषयो से निवृत्ति का परिणाम । क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी चार कषाय,
मिथ्यात्व और सम्यग मिथ्यात्व-इन छह प्रकृतियों के
उदय, क्षय और दमन से प्रादुभूत तत्त्व-श्रद्धान । जीण-कषाय-बारहवाँ गुण-स्थान, कषायो की ममूल समाप्ति,
वीतराग स्थिति । तीण-मोह-क्षीण-कषाय का दूसरा नाम, मोह का समूल नाश। उधा-परीषह-भूख की पीडा को शान्ति से सहन करना ।
[ ४२ ]