________________
कुश्रुत-मिथ्यात्व पोषक ग्रन्थ । कुश्रुतज्ञान-मिथ्यादर्शन के उदय से सहचरित श्रुतज्ञान । कूट-१. माया-प्रपंच, २. पिंजरा, मारक यन्त्र, ३. पर्वतमाला
के उपशिखर । कूटग्राह्य-धोखे से जीवो को पकडना । कूटलेख-तद्रूप वनावटी हस्ताक्षर । कूटशाल्मली-नरको के अत्यन्त पीडादायक कंटीले वृक्ष । कृत्कत्य-कमों से मुक्त। कृतिकर्म-विधिपूर्वक वन्दन । कृष्ण-लेश्या-तीन अशुभ लेश्याओ में से प्रथम ; जीव की
निकृष्ट मनःस्थिति। केवलज्ञान- इन्द्रिय और मन से निरपेक्ष सर्वग्राही आत्मज्ञान । केवलज्ञानी- सर्वज्ञ । केवलदर्शन-केवलज्ञान के समान सर्वग्राही दर्शन । केवललब्धि-अहंत या सिद्धि के केवलज्ञान तुल्य नव
लब्धियाँ-अनन्त-ज्ञान, अनन्त-दर्शन, अनन्त-सम्यक्त्व, अनन्त-सुग्व, अनन्त-दान, अनन्त-लाभ, अनन्त-भोग,
अनन्त-उपभोग तथा अनन्त-त्रीय । केवलवीर्य-जानने-देखने की अनन्त शक्ति ।
[ ३६