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करण-जीव के शुभ-अशुभ परिणाम । करणानुयोग-लोक-अलोक के विभाग, युगो के बदलाव तथा
चतुर्गति के स्वरूप को दरशाने वाला ज्ञान विशेष । करुणा-उदार-भाव। कर्ता-शुभ-अशुभ कार्य करने वाला जीव । कर्म-१ मन, वचन, शरीर की शुभ या अशुभ प्रवृत्ति,
२ आत्मा को आबद्ध करने वाला पुदगल-परिणाम । कर्मचेतना-अन्य स्वभाव में परिणति । कर्मभूमि-भरत आदि कर्म-प्रधान क्षेत्र । कर्मयोग-आत्म-प्रदेशो का परिस्पन्दन । कर्म-वर्गणा-कर्म रूप में परिणमन करने वाला पुद्गल-समूह । कर्म-संवत्सर-लौकिक वर्ष , तीन-मौ-साठ रात-दिन के बरावर का काल ।
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