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________________ एकत्व-अनुप्रेक्षा-स्व-कर्तृव्य एव स्व-भोक्तृत्व । कमों के उपार्जन एवं उपभोग में स्वय की सलग्नता एवं अन्य सर्व जीवो की असहायता का चिन्तवन । एकभक्त-साधु का मूल गुण , एक बार शुद्ध भोजन । एकल-विहारी-अकेला विचरण करने वाला मुनि । तप, - ज्ञान, आचार और आगम-कुशल विशिष्ट साधु का एकाकी विहारी। एकान्त-एक धर्मात्मक वस्तु का ग्रहण, वह सम्यक भी हो ___ सकता है और मिथ्या भी। एकासन-दिन में एक बार भोजन करना। एकेन्द्रिय-केवल स्पर्शन-धारी जीव-पृथ्वी, जल, वायु, ___ अग्नि व वनस्पति आदि । एवकार-साध्य की स्वीकृति , 'यह ही है'-ऐसा ही है । एवम्भूत नय-जो वस्तु जैसी है, उसे उस रूप में कहना । व्युत्पत्तिपरक शब्दार्थ के तद्रूप क्रिया का सामंजस्य । जेसे गो शब्द से गमन करती हुई गाय का ग्रहण, न कि बैठी हुई का। एषणा-सिमिति-आहार-चर्या विषयक विवेक । [ ३० ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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