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________________ सद्गुरु-आत्म-जागृत वीतराग-पुरुष । सधर्मा-धर्म-पथ पर चलने वाला समकक्ष व्यक्ति , साधर्मी भाई। सन्तोषव्रत-परिग्रह का परिमाण । सन्निकर्ष-भावों का संयोग । सन्निवेश-देश के अधिपति का अवस्थान । संन्यास-असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति । सपक्ष-वह स्थान, जहाँ साध्य का सजातीय धर्म रहता है । सप्तक्षेत्र-जिनचैत्य, जिन-बिम्ब, धर्मशास्त्र, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका-ये सात धन-व्यय साधन । सम-समता, समानता, रूक्ष पुद्गल-परमाणु के समान स्निग्ध पुदगल-परमाणु । समकित-सम्यक्त्व । देखें-सम्यक्त्व/सम्यग्दर्शन। समता-तुच्छ एवं मूल्यवान वस्तु या स्थिति के प्रति तटस्थता, अनुद्विग्नता , माध्यस्थ-भाव । समनस्क-संशी जीव , मन-युक्त जीव , स्मृति-सम्पन्न जीव । समनोज्ञ-सम्भोग-सम्पन्न ; मनोज्ञ ज्ञानादि से युक्त जीव । समभिरूढ़ नय-किसी शब्द का एक ही पदार्थ के लिए रूढ [ १२६ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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