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वस्तु-गुण एवं पर्यायो का स्वामी । वाचक-वारह अंगो के ज्ञाता , आगमवेत्ता , एक पद । वाचना-अध्यापन । वाचनाचार्य-साधओ को स्नातक अध्ययन कराने वाला
प्रज्ञा-श्रमण । वातरशना--साधु । चात्सल्य-गुरु, अतिथि, रुग्ण, तपस्वी, साधर्मीजन के प्रति
अनुराग। चायुकायिक-जीव द्वारा वायु का शरीर धारण । वारण-निषेध । चार्षिक योग-वर्षा योग ; आषाद-पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा
तक की अवधि ; चातुर्मास । वासना-सस्कार , आन्तरिक विकार , विकृत भाव । विकथा-संयम-विघातक वार्ता । विकल-अधुरा । विकल-अन्तरंग में हर्ष-विषाद रूप परिणाम ।
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