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________________ 'जैन परम्परा का इतिहास स्थानकवासी और तेरापन्थ के अनुसार मान्य आगम ३२ है। वे ये है: । आगम १-दशव कालिक १-निशीथ २-व्यवहार ३-वृहत्कल्प ४-दशाश्रुत २-उत्तरा ध्ययन ३-अनुयोग स्कन्ध अंग उपांग १-माचारांग १-औपपातिक २-सूत्रकृतांग २-राजप्रभीय ३-स्थानांग ३-जीवाभिगम ४-समवायांग ४-प्रज्ञापना ५-भगवती ५-जम्बूद्वीप६-ज्ञातृधर्मकथा प्राप्ति ७-उपासकदशा ६-चन्द्र-प्रज्ञप्ति -अन्तकृद्दशा ७-सूर्य-प्रज्ञप्ति 8-अनुत्तरोप- ८-निरयावलिका पातिक -कल्पवतंसिका १०-प्रभ-व्याकरण १०-पुष्पिका ११-विपाक ११-पुष्पिचूलिका १२-वृष्णिदशा ४-नन्दी १-आवश्यक आगमका व्याख्यात्मक आगम के व्याख्यात्मक साहित्य का प्रारम्भ नियुक्ति से होता है और वह 'स्तबक" व जोडो-तक चलता है । द्वितीय भद्रबाहु ने ११ नियुक्तियां लिखी :१-आवश्यक-नियुक्ति ७-वृहत्कल्प-नियुक्ति २–दशवकालिक-नियुक्ति -व्यवहार-नियुक्ति ३-उत्तराध्ययन-नियुक्ति ६-पिण्ड-नियुक्ति ४-आचारांग-नियुक्ति १०-ओघ-नियुक्ति ५--सूत्रकृतांग-नियुक्ति ११-ऋषिभाषित-निर्युक्ति ६- दशाश्रुतस्कंध-निर्मुक्ति
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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