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________________ [ ८३ इनका समय विक्रम की पाँचवी, छठी शताब्दी है । वृहत्कल्प की नियुक्ति भाष्य- मिश्रित अवस्था मे मिलती है, व्यवहार -निर्युक्ति भी भाष्य मे मिली - भाष्य और भाष्यकार - जैन १ - दशर्वकालिक - भाष्य -व्यवहार-भाष्य ३ - बृहत्कल्प - भाष्य १ - आवश्यक १ - दशवैकालिक निर्युक्ति और भाष्य पद्यात्मक है, वे प्राकृत भाषा मे लिखे गए है । चूर्णियाँ और चूर्णिकार ३ नन्दी ४- अनुयोगद्वार ५- उत्तराध्ययन ६ – आचारांग ७ सूत्रकृतांग - निशीथ चूर्णियाँ गद्यात्मक है | इनकी भाषा प्राकृत या संस्कृत मिश्रित प्राकृत है । निम्न आगम ग्रन्यो पर चूर्णियां मिलती हैं : १० - दशाश्रुत- स्कघ ११ - बृहत् कल्प १२ - जीवाभिगम 5 परम्परा का इतिहास -} ४- - निशीथ भाष्य ५ - विशेषावश्यक भाष्य -- जिनभद्र क्षमाश्रमण ( सातवी शताब्दी ) ६- पचकल्प-भाष्य- - धर्मसेन गणी , ( छठी शताब्दी ) १३ - भगवती १४ - महा-निशीथ १५ - जीतकल्प १६ -- पचकल्प १७ - ओघ निर्युक्ति -यवहार प्रथम आठ चूर्णियो के कर्ता जिनदास महत्तर है । इनका जीवनकाल विक्रम को मानवी शताब्दी है । जीतकल्प-चूर्गी के कर्त्ता सिद्धसेन सूरि हैं । उनका जीवनकाल विक्रम की १२ वी शताब्दी है । वृहत्कल्प चूर्णी प्रलम्ब सूरि की कृति है । शेप चूर्णिकारों के विषय मे अभी जानकारी नही मिल रही है । दवैकालिक की एक चूर्णि और है । उसके कर्त्ता है— गस्त्य सिंह मुनि | उ नका समय अभी भलीभांति निर्णीत नही हुआ 1 -
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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