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________________ ८० जैन परम्परा का इतिहास औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार, देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रावेध्यक, सूर्यप्रज्ञप्ति, पौरुषी मंडल, मंडल प्रवेश, विद्या-चरण-विनिश्चर्य, गणि-विद्या, ध्यान-विभक्ति, मरणविभक्ति, आत्म-विशोधि, वीतराग-श्रुत, सलेखना-श्रुत, विहार-कल्प, चरणविधि, आतुर-प्रत्याख्यान, महा-प्रत्याख्यान । ( न० ४६ ) इनमें से कुछ आगम उपलब्ध नही है। जो उपलब्ध है, उनमें मूर्ति-पूजक सम्प्रदाय कुछ नियुक्तियो को मिला ४५ या ८४ आगमों को प्रमाण मानता है । ४५ आगमों की सूची (१) आचारांग (२१) पुष्पिका (२) सूत्रकृतांग (२२) पुष्प-चूलिका (३) स्थानांग (२३) वृष्णि-दशा (४) समवायांग (२४) आवश्यक (५) व्याख्या प्रज्ञप्ति (२५) दशवकालिक (६) ज्ञातृ धर्म कथा (२६) उत्तराध्ययन (७) उपासकदशा (२७) पिण्ड-नियुक्ति (८) अन्तकृद्दशा अथवा ओघ-नियुक्ति (६) अनुत्तरौपपातिक (२८) नन्दी (१०) प्रश्न-व्याकरण (२९) अनुयोगद्वार (११) विपाक (३०) निशीथ (१२) औपपातिक (३१) महा-निशोथ (१३) राजप्रश्नीय (३२) वृहत्कल्प (१४) जीवाजीवामिगम (३३) व्यवहार (१५) प्रज्ञापना (३४) दशाश्रुत-स्कध (१६) सूर्य-प्रज्ञप्ति (३५) पचकल्प ( विच्छिल ) (१७) चन्द्र-प्रज्ञप्ति (३६) आतुर-प्रत्याख्यान (१८) जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति (३७) भक्तपरिज्ञा (१९) कल्पिका (३८) तन्दुल-वैचारिक २०) कल्पावतसिका (३९) चन्द्र-वेध्यक
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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