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जैन परम्परा का इतिहास औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार, देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रावेध्यक, सूर्यप्रज्ञप्ति, पौरुषी मंडल, मंडल प्रवेश, विद्या-चरण-विनिश्चर्य, गणि-विद्या, ध्यान-विभक्ति, मरणविभक्ति, आत्म-विशोधि, वीतराग-श्रुत, सलेखना-श्रुत, विहार-कल्प, चरणविधि, आतुर-प्रत्याख्यान, महा-प्रत्याख्यान । ( न० ४६ )
इनमें से कुछ आगम उपलब्ध नही है। जो उपलब्ध है, उनमें मूर्ति-पूजक सम्प्रदाय कुछ नियुक्तियो को मिला ४५ या ८४ आगमों को प्रमाण मानता है । ४५ आगमों की सूची (१) आचारांग
(२१) पुष्पिका (२) सूत्रकृतांग
(२२) पुष्प-चूलिका (३) स्थानांग
(२३) वृष्णि-दशा (४) समवायांग
(२४) आवश्यक (५) व्याख्या प्रज्ञप्ति
(२५) दशवकालिक (६) ज्ञातृ धर्म कथा
(२६) उत्तराध्ययन (७) उपासकदशा
(२७) पिण्ड-नियुक्ति (८) अन्तकृद्दशा
अथवा ओघ-नियुक्ति (६) अनुत्तरौपपातिक
(२८) नन्दी (१०) प्रश्न-व्याकरण
(२९) अनुयोगद्वार (११) विपाक
(३०) निशीथ (१२) औपपातिक
(३१) महा-निशोथ (१३) राजप्रश्नीय
(३२) वृहत्कल्प (१४) जीवाजीवामिगम
(३३) व्यवहार (१५) प्रज्ञापना
(३४) दशाश्रुत-स्कध (१६) सूर्य-प्रज्ञप्ति
(३५) पचकल्प ( विच्छिल ) (१७) चन्द्र-प्रज्ञप्ति
(३६) आतुर-प्रत्याख्यान (१८) जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति
(३७) भक्तपरिज्ञा (१९) कल्पिका
(३८) तन्दुल-वैचारिक २०) कल्पावतसिका
(३९) चन्द्र-वेध्यक