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________________ १७६ ] जैन युग-निर्माता | विवाह के लिए ये इकट्ठे हुए हैं ? यह कैसे हो सकता है, तुम ठीक ठीक और सब सब हाल सुनाओ । सारथीने निर्भय होकर कहा - महाराज ! आपके विवाह में शामिल होनेके लिये बहुत से म्लेच्छ राजालोग आए हुए हैं, और उनमें बहुतसे लोग मांस खाने वाले भी हैं । नेमिकुमार बोले- सारथी, बोलते जाओ, तुम बीचमें क्यों रुक गये ? सारथी ने कहा- महाराज ! उनके मांस भोजनके लिए ही इन पशुओंको माग शायगा | नेमिनाथका हृदय भर आया । वे बोले:- सारथी ! यह तुमने क्या कहा ? मेरे विवाह के लिए उन बेबारे गरीब जानवरोंको मारा जायगा ? सारथीने फिर कहा :- महाराज ! हां, इनको माग जायगा । आप दयालु और करुणामय हैं, इसलिए आपको आया हुआ जानकर यह आपसे बिन्ता करने के बहाने चिल्ला रहे हैं । नेमिनाथने दयापूर्ण स्वरसे कहा:- ऐ सारथी ! मेरे विवाह के लिए ये गरीब प्राणी मारे जायेंगे, इस लिए यह मुझसे विनती करने आए हैं, सारथी ! क्या यह सब सच हैं ? साथी बोला :- हां महागज ! श्री कृष्ण महाराजकी ऐसी ही भाज्ञा है, उनके वचनको कोई टाल नहीं सकता । नेमिनाथने फिर कहा :- सारथी ! क्या श्री कृष्णजीकी ऐसी ही भाज्ञा है कि मेरे विवाह के लिए यह बेकसूर पशु मारे जांय और उसकी इन आज्ञाको कोई टाल नहीं सकता ? सारथी बोला- हां महाराज! वह चक्रवर्ती राजा है, उनकी माज्ञा के खिलाफ यहाँ पर कोई आवाज नहीं उठा सकता ।
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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