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जैन युग-निर्माता ।
(१०)
रामके जन्मोत्सव के बादसे अयोध्या अपने सौमाभ्यसे वंचित थी, आज रामके लौटने पर उसने अपना सौभाग्य फिर पाया, वह सौन्दर्यमय हो उठी ।
विरागी भरदने श्रीरामके चरणोंपर अपना मुकुट रख दिया, वे एक क्षणके लिए भी अब अयोध्या में नहीं रहना चाहते थे । प्रजाकी रक्षा के लिए श्रीरामको राज्यभार स्वीकार करना पड़ा । रामराज्यसे अयोध्याका गया हुआ गौरव पुनः लौट माया, प्रजाने संतोषकी सांस की राम प्रजाके अत्यंत प्रिय बन गए। उन्होंने राज्यकी सुन्दर व्यवस्था की। प्रत्येक नागरिकको उनके योग्य अधिकार दिये, उनके राज्य में सबल और बलवान, घनी निर्बल और नीच ऊंचका कोई भेदभाव नहीं था, सबको समान अधिकार प्राप्त था ।
सुखसागर में अशांतिका एक तू उठा । तूफानकी लईर धीरे२ उठीं । " श्री रामने सीता के सतीत्व की परीक्षा लिए विना ही उसे अपने घर में स्थान दे दिया, वह सदणके यहां कितने समय तक रहीं, वहाँ रहकर क्या वह अपने आपको सुरक्षित रख सकी होंगी ?" लहरें श्री रामके कानों तक जाकर टकराई भयंकर तूफान उमड़ उठा, इस तूफान में पड़कर श्री राम अपने को संभाल नहीं सके, सीताका त्यागकर उन्होंने इस तूफानको शांत करनेका प्रयत्न किया ।
सीताजी भयंकर जंगल में निर्वासित थीं। वहां उन्होंने प्रतापी लव-कुशको जन्म दिया ।
नारद द्वारा सीताजी परीक्षा देनेके लिए एकवार फिर अयोध्या बाई । गई उन्होंने अग्निप्रवेश किया और भरने सतीत्वकी परीक्षा में