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जैन युग-निर्माता। देकर उनका सम्मान करते थे। चारणगण उनके अटूट ऐश्वर्यका मधुर शब्दों में गान कर रहे थे-वे कह रहे थे-पृथ्वीपति ! " आपके प्रबल पराक्रमसे अखिल भारतक राजाओंके हृदय कंपित होते हैं, मापके ऐश्वर्य और वैभवकी तुलना करनेकी शक्ति कुबे में नहीं है, देवबाला आपके ऐश्वर्य निवासमें रहनेकी अभिलाषा रखती हैं। भारतमें ऐसा कौन व्यक्ति है जो आपके साम्डने नतमस्तक हुआ हो ? जिसकी ओर आपकी कृपा-दृष्टि होती है वह क्षणमें महान् बन जाता है।"
राजा सगर अपने अनंत वैभव और अखंड प्रतापके गीतोंको सहर्ष सुन रहे थे । महामंडलेश्वा सजाओंने उनको कृपा-प्राप्ति के लिए विनीतभावसे उनकी ओर देवा, उन्होंने मंत्रियों ने कार्य सम्बाघो कुछ परामर्श किया, जनता के मुख दुखकी बातें सुनी और दरबार समाप्त किया।
पाश्व रक्षकों के साथ उन्होंने गज्यमइलमें प्रवेश किया उसी. समय उनके कानोंमें एक मधुर ध्वनि गूंज उठी
पथिक माया में मग्न न होना। मिथ्या विश्व प्रलोभनमें रे, आत्मशक्ति मत खोना । मोहक दृश्य देग्व यह जगका इस पर तनिक न फल । मतवाला होकर र मानव ! इसमें तू मत भूल ।
पथिक ! मायामें मग्न न होना ।। गीत तन्मयता के साथ गाया जा रहा था, चक्रवर्तिने उसे सुना। गीतकी मधुर ध्वनि पर उनका मन मचल उठा, वे उसके पदलालित्यपर विचार करने लगे। उन्होंने जानना चाहा कि यह मधुर गीत कौन