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ROMANOR
७२] जैन युग-निर्माता। यसे मुझे ईर्षा नहीं है । फिर उन्हें मेरी स्वाधीनतासे द्वेष क्यों है ! वे मेरी स्वाधीनता क्यों नहीं देखना चाहते ! क्या मेरी स्वाधीनता छीने बिना उनका चक्रवर्तित्व स्थिर नहीं रह सकता ! इसका क्या अर्थ है कि भारतके सभी राजाओंने उनका प्रभुत्व स्वीकार कर लिया है और अपनी स्वाधीनता खो दी है तो मैं भी उसे नष्ट हो जाने दं! वे राजा कोग यदि आजादीका रहस्य नहीं समझते उनके हृदय यदि इतने निर्वल होगए हैं तो मैं उसके रहस्यको समझता हुवा भी क्यों गुलाम बन ! नहीं, यह कभी नहीं होगा, भले ही इसके लिए मुझे अपने भाईका विरोधी बनना पड़े और चाहे सारे संसारका विरोध करना पड़े, मैं उसे सहर्ष स्वीकार करूंगा, और आजादीका मूल्य चुकाऊंगा।
उन्होंने उसी समय पत्रका उत्तर लिखाप्रिय अग्रज ! अभिवादनम् ।
भारत विजयके पक्षमें बधाई ! एक भाईके नाते मुझे इस विजयोत्सवमे मवश्य सम्मिलित होना चाहिए था लेकिन नहीं होरह। हूं इसका उत्तर मापके पत्रका अंतिम भाग स्वयं दे रहा है। मैं एक स्वतंत्र राजा हूं, मेरे पूज्य पिता ऋषभदेवजीने मुझे यह राज्य दिया है, फिर मुझे पापको माधीनता स्वीकार करनेकी क्या मावश्यक्ता ! भाप मेरी स्वाधीनता नष्ट करने पर तुले हुए हैं। ऐसी परिस्थितिमें मापकी कोई भी भाज्ञा पालन करनेसे में इन्कार करता । मा मेरे बड़े भाई है। भाईके नाते मैं मापकी प्रत्येक सेवाके लिए तैयार हूं, लेकिन जब मैं सोचता है कि भाप चक्रवर्ति हैं और इस चक्रार्तिके प्रभावके नाते मुझपर अपनी भाशा चलाना चाहते है तब भापको