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६६] जैन युग-निर्माता। होगा, तभी हम लोकमें शांति और सुख स्थिर रह सकेंगे, और हमारे नगर और ग्रामों में कोई भृावा, रोगी, अज्ञानी और पीड़ित नहीं रह सकेगा। हमें प्रतिदिन अपने लिए कमाये हुए धनमें से कुछ अंश ४५ दानके लिए बचा कर रखना होगा, समय पर उसका सदुपयोग करना होगा।
दानकी इन पद्धतियों को उपस्थित जनताने समझा और उस दिनको चि:-मरणीय बनाने के लिए उसे 'अक्षय - तृतीया' का नाम दिया ।
चकनी भानने उपस्थित जनताके साम्हने श्रेयांसकुमारको दानवीर पदस विभृ'५२ किग।
उप यकी बनाई हुई दान व्यवस्था समयके माथ फूली फली और बढ़ी, और आज तक उसका प्रचार होता रहा । आजका मानव समाज उनकी उस दिनकी प्रचारित दान प्रथाका आभारी रहेगा।