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मेघेश्वर जयकुमार |
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वीर जयकुमारकी इस विजयसे अकंपन बहुत ही प्रसन्न हुए । उन्होंने विजय और विवाह के उपलक्ष में एक विशाल उत्सवकी योजना की । युद्धस्थल विवाहोत्सव के रूपमें बदल गया । अर्ककीर्ति और अन्य राजाओंने इस महोत्सव में सम्मिलित होकर पिछले विशेषको प्रेममें बदल दिया । नृत्य, गान और आनंदका मधु' मिलन हुआ और जयकुमार के गले में डाली वरमालाका फल सुलोचनानं विवाद के रूपमें पाया ।
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सुलोचना जैसी सुन्दरी और सुशीला पत्नी पाकर जयकुमारका जीवन स्वर्गीय बन गया था । सुलोचनाके लिए उसके हृदय में नि:छल स्नेह था। वह नारी जातिका सम्मान करना जानता था । उसका स्नेह उस अक्षय झानेकी तरह था जो कभी मूग्वता नहीं है। दोनों ही एक दूसरे पर हृदय न्योछावर करते थे और मानवीय कर्तव्यों का पालन करते थे | गृहस्थ जीवन के कर्त्तव्यों को वह मूक जाना नहीं चाहते थे । जनताकी सेवा, दया, सहानुभूति और उक्कारकी भावराओंसे उनका मन भरा हुआ था, धर्मपर उनकी टूट श्रद्धा थी । देव और गुरुभक्तको वे जानते थे । उनका जीवन एक आददा जीवन था ।
जयकुमारको जो कुछ भी वैभव प्राप्त था उससे वह सुखी थे । वे अपने जीवनको संयमी और धार्मिक बनाना चाहते थे । मन कहीं संयमकी सीना उल्लंघन न कर जाए इसके लिए उन्होंने भाजीवन एकपत्नी व्रत लिया था । वीर, साहसी और सुन्दर होनेके कारण वह अनेक सुन्दरियोंके प्रिय थे। लेकिन सुन्दरता के इस मालोक में