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मेघेश्वर जयकुमार । [२९ एकबार और अपनी सहृदयताका प्रयोग करना चाहा। वह बोलाकन्या अपना हृदय एकबार ही समर्पण करती है और जिसे समर्पण करती है वही उसके लिए महान होता है। महानता और तुच्छताका नाप उसका परीक्षण है । अपने मुंहसे महान् बनना शोभाप्रद नहीं । कुमारीने मुझे वरण किया है, वह हृदयसे अब मेरी पत्नो बन चुकी है किसीकी पत्नी के प्रति दुर्भावनाएं लाना नीचताके अतिरिक्त कुछ नहीं है। चक्रवर्ति पुत्रके मुंहमें इस तरहकी अनर्गल बातें सुननेकी मुझे माशा नहीं थी। तुम्हें जानना चाहिए कि वीर पुरुष महिलाओंकी सम्मान रक्षा अपने प्राण देकर करते हैं। यदि तुम नहीं मानते, तुम्हारी दुर्बुद्धि यदि तुम्हें अन्यायके लिए प्रोत्साहित करती है तो मुझे तुम्हारे भविवेकको दंड देनेके लिए युद्धक्षेत्रमें उतरना होगा। मैं तुमसे डरता नहीं हूं, जयकुपार अन्याय और युद्धसे कभी नहीं डरता । यदि तुम्हारी इच्छा युद्धका तमाशा देखनेकी ही है तो मैं वह भी तुम्हें दिखला दूंगा।
कुपित अर्ककीर्ति पर इसका कोई प्रभाव नहीं पा । वह बोलायुद्ध तो तुम्हारे शिल्पर वड़ा हुआ है, तुम उसे बातोंसे टालनेका प्रयत्न क्यों करना चाहते हो ! यदि तुम्हें मृत्युका भय है तो शीघ्र ही मुझे मुलोचना समर्पित करदो, नहीं तो तुम्हें मृत्युकी गोदमें सुलाकर मैं इसका उपभोग करूंगा।
शांत ज्वालाको प्रलयने उभाड़ा । जयकुमारके हृदयका वीरभाव का सोता नहीं रह सका । वह बहादुर, अकीर्ति और उसके उभाड़े सैकड़ों राजकुमारों के साम्हने कुलित केशरी, सिंहकी तरह बढ़ चला।