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________________ AWAHILARIAnawunMANORAMANANDINIRAMMAMMON तपस्वी वारिषगर। [३२७ संकर उसके जीवनसाथी होते हैं। समयकी गति और अनुकूल बायु उन्हीं विचारोंको जीवन देकर पृष्ट करती है। विदुषो चेलिनी हम मनोविज्ञानको जानती थी। उसने वरिषं. मके जीवनको पवित्रताके सांचेमें ढालने का महान प्रयत्न किया था । उसने उप वातावरणसे अपने पुत्रको बचाने का प्रयत्न किया था जिसमें पड़कर बच्चों का जीवन नष्ट हो जाता है। अधिकांश महिलाएं भाने बालकों को मारघरमें मग्न रखकर उनके जीवनको विलासमय बना देती हैं। शृंगार और बनावट द्वारा उन्हें हाथका विलौना ही बनाए रहती है । जग जरामी बातों में उन्हें डग धमकाकर और मृतका भय दिखाकर उनका हृदय भयसे भर देती हैं। विद्या, कला, नीति और सदाचारके स्थान पर असभ्यतापूर्ण विदेशी शृङ्गार और बनावट से उनका मन और शरीर सजाती रहती है। उनके स्वान के लिए शुद्ध और पवित्र वस्तुएं न देकर बाजारको सड़ी गली मिठाइयों और नमकीनोंकी च ट लगाकर उन्हें इन्द्रिय लोलु। बनाती हैं। भृष्ट, दुगवारी, व्यसनी तथा विवेकहीन सेवकों की संशितामें देका उनकी उन्नति और विकाम मार्ग बन्द कर देती हैं। उन दुर्व्यसनी सेवकों से वह गंदी गालियां सीखते हैं। अपवित्र आचरणाम अग्ने हृदयको भाते हैं और अपने जीव को निम्नतर बनाते हैं। उनके हाथमें जीवन विकसित करनेवाली पवित्र पुस्तके न देकर उन्हें जेवर्शसे सजाती हैं, विद्या और ज्ञानसंपादनकी अपेक्षा वे खेलको ही अधिक पसंद करती हैं। विदेशी खिलौनों और महकदार भूषणों के स्वरीदने में जितना द्रव्य वे बरबाद
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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