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जैन युग-निर्माता .
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(४)
राजकुमार बारिषेण राजगृहके प्रसिद्ध नरेश बिंबसा के प्रतापशाली पुत्र थे । माता चलिनी द्वारा उन्हें बाल्यावस्थासे ही धर्म और सदाचार संबंधी उच्चकोटिकी शिक्षा उन्हें मिली थी। रानी चलिनी उच्चकोटिकी धार्मिक प्रतिभाश ली महिला थी, पथभृष्ट हुए राजा विचसारको उन्हाने धर्मके श्रेष्ठ मार्गपर लगाया था। विदुषो और धर्मशीला माताके जीवनका प्रभाव बारिशके कोमल हृदय पर पड़ा था।
बालकों के जीवनकी सच्ची साक्षिका और उसे सुर्य ग्य बनानेवाली सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका उसकी जननी ही है। पुत्रको जो शिक्षा जननी बाल्यावस्था से ही सालतापूर्वक हंसते और खेलते हुए देखकर उसके जीवनको मधुर और मुखमय बना सकती है उसकी पूर्ति सैकड़ों शिक्षिकाओं द्वारा भी नहीं हो सक्ती । माता पिताके आ चरणों को बालक बाल्यावस्था से ही ग्रहण करता है । पिताकी अपेक्षा बालकको माताके संक्षण में अपना साधक जीवन व्यतीत करना पड़ता है। बालकका हृदय मोमके सांचकी तरह होता है, माता जिस तरह के चित्र उसके मानस पटल पर उतारना च हे उस समय आसानी से उतार सकती है। बालक माता के प्रत्येक संसार उमके आचाण, विचार और संकलों का अपने अन्दर एक सुन्दर चित्र ननाता रहता है, वह जो उस समय उसका दायरा केवल माताकी गोद तक सीमित रहता है उसके चारों ओर वह जिन विचारोंके रंगों को पाता है उन्हींसे अपने विचारों के धुंधले चित्रों को चित्रित करता है। समय पाकर उसके वही धुंधले चित्र वही अपरिपक्व विचार एक हद संसासका स्थान ग्रहण कर लेते हैं। वही