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जन युग-निर्माता।
अपनी कन्या राजा बिंबसारको दे चुके थे। लचूलकी शक्तिका उन्हें परिचय था, लेकिन किसी हारूतमें उन्हें यह बात पसंद न थी। उसने अपनी कन्या देनेसे इनकार कर दिया ।
सचूसको मृगांककी यह बात असह्य हो उठी। उसने अपनी संपूर्ण सैना लेकर कालपुर पर चढ़ाई कर दी।
मृगांक इस युद्ध के लिए तैयार नहीं था। उसकी शक्ति नहीं थी कि वह रत्नचूलका मुकाबला कर सके । इसलिए इस संकटके समय अपनी यात्मरक्षाके लिए राजा बिंवसारसे उसने सहायता मांगी। बिंवसारने सहायता देना तो स्वीकार कर लिया लेकिन वे चिंतामें पह गए कि रत्नचूल जैसे वीरके मुकाबलेमें किस बहादुरको भेजा जाय । लेकिन उनके पास अधिक सोचने के लिए समय नहीं था, उन्हें शीघ्र ही सहायता भेजनी थी। अपने वीर सैनिकों को बुलाकर उनसे इस कार्यका वीड़ा उठाने के लिए उन्होंने कहा। मभी वीर सैनिक मौन थे, जंबुकुमार भी इस सभा निमंत्रित थे । वीरोंकी कायाता पर उन्हें शेष भागया वे अपने स्थानसं ठे और बीड़ा उठाकर उसे चवालिया ।
राजा बिवसाने उनके इस साहसकी प्रशंसा की और उनके सिर पर वीर पट्ट बांधकर मृगांक की सहायताके लिए वीर सैनिकों को साथ ले जानकी आज्ञा दी। बुकुमारको अपनी भुजाओं पर विश्वास था। वे अपनी वीरताके भावंशम बोले। महाराज ! मुझे आपके सैनिकों की मावश्यकता नहीं, मेरी भुजाएं ही मेरी सेना है। मैं अकेला इंसस तैनिकों के बराबर हूं। में अकेला ही जाता हूं । साप निश्चित रहिए, देखिए आपके आशीर्वादसे वह अभिमानी रकचूल अभी Prod aman